महानगर में बसंत
कैसे करूँ स्वागत बसंत
पर्यावरण धूल भरा है
कंक्रीट के इस जंगल में
धुँए का बादल पसरा है!
मीलों मील चलती हूँ
फुलवारी तो दिखती नहीं
पार्क में लगतीं योग कक्षाएँ
हरी दूब भी उगती नहीं!
फूलों के चित्र किताबों में हैं
बच्चे जिनमें भरते हैं रंग
पूछते, अमलतास कहाँ है?
ढूँढते रहते हम उनके संग !
महानगर की भीड़ में
बसंत के लिये जगह कहाँ
शहरीकरण के दौर में
प्रकृतिकरण पर जोर कहाँ !
पेड़, पक्षी, फूलों की बातें
बसंत की बासंती सौगातें
शायद मिल जाएँ पहाड़ों पर
पर्यटक जहाँ सैर को जाते
मेरे घर के आँगन में
बसंत एक बार आ जाना
गेंदा, गुलाब, गुलमोहर का
स्निग्ध सौंदर्य छिटका जाना!
मेरे घर के आँगन में
ReplyDeleteबसंत एक बार आ जाना
गेंदा, गुलाब, गुलमोहर का
स्निग्ध सौंदर्य छिटका जाना!
kitna komal bhav hai inmein...bhaut sunder