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प्रीत की अभिव्यक्तियाँ
शब्दावली पर आश्रित रहीं कब
प्रीत की अभिव्यक्तियाँ !
नयन कह जाते प्रीत की भाषा
लगीं हों चाहे कितनी पाबंदियाँ !
भरी सभा के बीच चुहल सुन
बिहारी की नायिका लजियाती
लाज भरे लोचन से लाजो
अनकहा बहुत कुछ कह जाती !
कवि ने मेघदूत रच डाला
बादल ले चले प्रेम संदेस
हवाओं में सुरभि प्रीत की
बही जो सीमा पार विदेस !
चातक सा प्यासा प्रेमी
इत-उत उड़ता आकुल-व्याकुल
स्वाति की बूँद मिल जाती
स्वत: खिल जाते मन के वकुल!
मुकुल, पुष्प, पल्लव, द्रुम, लताएँ
भँवरे, तितली, शुक, काग, कपोती
प्रेमियों का मन जीता सबने
पहुँचाई प्रिय को प्रिय की पाती!
पद्मावती की प्रेम-कथा में
हीरामन शुक की मुख्य भूमिका
प्रेम से परमेश्वर मिल जाता
वहाँ न कोई काम अहम् का!
अनोखी प्रेम की दुनिया
निराली इसकी अभिव्यक्तियाँ
धरा-गगन के बीच प्रकृति
हँस-हँस करती अठखेलियाँ
त्वरित संचार हो या सबकुछ
पल में ध्वस्त हो जाये
प्रेम की भावना शाश्वत जग में
कोई न इसे मिटा पाये ।