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Thursday, November 18, 2010

मैंने प्यार किया

मैंने प्यार किया
मैंने प्यार किया
शिशु की कोमल सुस्कान से
निर्मल निष्पाप दृष्टि ने
मिटा दी थकान तन-मन की!
मैंने प्यार किया
वात्सल्यमयी माँ के आँचल से
जिसके नीचे निश्चिंत सदा ही
सारी खुशियाँ बचपन की!
मैंने प्यार किया
फूल की कोमन पंखुरियों से
जिनके संस्पर्श से जागी
नूतन चेतना जीवन की!
मैंने प्यार किया
नभ पर उड़ते जलधर से
जिसने बरसाकर जल की बूँदें
प्यास बुझा दी धरणी की!
मैंने प्यार किया
ऊँचे शैल शिखर से
प्रेरणा स्त्रोत रहा सदा जो
राह दिखाई उन्नयन की!
मैंने प्यार किया
सहृदय मित्रों से
जिन्होंने सुख-दुख में साथ दिया
निभाई आन मित्रता की!
मैंने प्यार किया
श्रेष्ठतम शब्द संपदा से
जिसने विचारों को नई दिशा दी
समझा दी बात संचेतन की!
मैंने प्यार किया
संतों की शीतल वाणी से
जिनके सान्निध्य से मिलती
सुरभि और शीतलता चंदन की!
मैंने प्यार किया
आत्म-तत्व के वैभव से
जिसने अनश्वर का भेद बताया
छवि दिखाई संपूरन की!
मैंने प्यार किया
प्रेम की स्निग्ध भावनाओं से
जिसने जन-जन को मीत बनाया
लागी लगन प्रिय से मिलन की!