सुरक्षा पर सदैव ही प्रश्नचिह्न
माँ ! न मैं तुम्हारी कोख में सुरक्षित
वसुधा ! न मैं तुम्हारी गोद में सुरक्षित
मेरी सुरक्षा पर सदैव ही प्रश्नचिह्न
परिवार में मैं उपेक्षित, अवांछित !
मेरा सौंदर्य भी अभिशापित
कुरूपता भी होती प्रताड़ित
सम्मान तलाशती हर नज़र में
छवि उभरती बड़ी ही कुत्सित !
ऐसे विषाक्त वातावरण में
वन्य जीवों के अरण्य में
विवश हो विषपान किया मैंने
आत्म दाह में समाज प्रतिबिंबित !
मेरा होना, न होना अर्थहीन
मेरा अस्तित्व श्री-विहीन
कभी स्वयं मरी, कभी मारी गई
प्रश्न खड़े हैं सारे अनुत्तरित !
अब मौन रहने का समय नहीं
घृणित कृत्य अब मान्य नहीं
सम्मान, सुरक्षा की दृष्टि हो
सुविचार करें जन-जन को संप्रेषित ।