Monday, September 10, 2012

सुरक्षा पर सदैव ही प्रश्नचिह्न

सुरक्षा पर सदैव ही प्रश्नचिह्न

माँ ! न मैं तुम्हारी कोख में सुरक्षित
वसुधा ! न मैं तुम्हारी गोद में सुरक्षित
मेरी सुरक्षा पर सदैव ही प्रश्नचिह्न
परिवार में मैं उपेक्षित, अवांछित !
मेरा सौंदर्य भी अभिशापित
कुरूपता भी होती प्रताड़ित
सम्मान तलाशती हर नज़र में
छवि उभरती बड़ी ही कुत्सित !
ऐसे विषाक्त वातावरण में
वन्य जीवों के अरण्य में
विवश हो विषपान किया मैंने
आत्म दाह में समाज प्रतिबिंबित !
मेरा होना, न होना अर्थहीन
मेरा अस्तित्व श्री-विहीन
कभी स्वयं मरी, कभी मारी गई
प्रश्न खड़े हैं सारे अनुत्तरित !
अब मौन रहने का समय नहीं
घृणित कृत्य अब मान्य नहीं
सम्मान, सुरक्षा की दृष्टि हो
सुविचार करें जन-जन को संप्रेषित ।














Thursday, December 30, 2010

नूतन पथ की ओर

नूतन पथ की ओर
                 मीना जैन
नव वर्ष स्वागत तुम्हारा
भाव प्रसून की पंखुरियों से
अभिनंदन नये दशक का
विनयशील की अंजुरियों से
हर्ष पताकाएँ फहरा कर
बाँधे हैं हमने वंदन वार
नभ पर उदित नूतन दिनमान
नूतन का स्वागत फिर एक बार
नूतन संदेश सुनाती भोर नई
सजने लगीं हैं नई दिशाएँ
अरुण रश्मियाँ लिख रहीं
उन्नयन की नूतन विधाएँ
नई आशा, नई ऊर्जा, चेतना
नव उमंग, नव विश्वास लिये
बढ़ चलें नूतन पथ की ओर
नव स्फूर्ति, नव उल्लास लिये ।

Sunday, November 21, 2010

गंगाजी के तट पर

गंगाजी के तट पर

गंगाजी के तट पर आस्था का संगम
गंगाजी के तट पर भक्ति की सरगम
गंगाजी के तट पर शिव संकीर्तन
गंगाजी के तट पर महिमा गायन
गंगाजी के तट पर सत्संग-गोष्ठी
गंगाजी के तट पर पंच परमेष्ठी
गंगाजी के तट पर उज्ज्वल रेती
गंगाजी के तट पर भाव के मोती
गंगाजी के तट पर शीत समीरण
गंगाजी के तट पे मिटे उत्पीड़न
गंगाजी के तट पर संध्या आरती
गंगाजी की महिमा गाये सरस्वती
गंगाजी की लहरों पे दीपक तिरते
गागाजी के  तट पर संत विचरते
गंगा देवनदी, जाह्नवी, सुर सरिता
लहर-लहर पर श्लोक और कविता
गंगाजी के तट पर लगते मेले
गंगाजी के तट पर दुनिया भूले
गंगाजी के तट की छवि निराली
गंगाजी के तट पे सदा हरियाली
गंगाजी की लहरें प्राण-प्रदायिनी
गंगा पतित पावनी, मोक्षदायिनी
गंगाजी के तट पर तीरथ सारे
गंगाजी के तट पे मनोरथ पूरे
हो भव्य प्रयास भागीरथ जैसा
उतरे संकल्प  सुरसरि सरीखा
सींचे सकल भुवन को गंगा
समाये हृदय कलश में गंगा
पावन दर्पण गंगा दर्शन
गंगा करती शीतल तन-मन
कानों में गंगा की कल-कल ध्वनि हो
नयनों में गंगा की छल-छल छवि हो
उर में हो गंगा की स्तुति स्मरण
मुख से गंगाजी की जय उच्चारण
पुण्य सलिला गंगा की धारा
मिटाती कष्ट कलुष ये सारा
अंत समय मिले गंगा वारि
गंगा मैया मोहि लेना उबारि ।


Thursday, November 18, 2010

मैंने प्यार किया

मैंने प्यार किया
मैंने प्यार किया
शिशु की कोमल सुस्कान से
निर्मल निष्पाप दृष्टि ने
मिटा दी थकान तन-मन की!
मैंने प्यार किया
वात्सल्यमयी माँ के आँचल से
जिसके नीचे निश्चिंत सदा ही
सारी खुशियाँ बचपन की!
मैंने प्यार किया
फूल की कोमन पंखुरियों से
जिनके संस्पर्श से जागी
नूतन चेतना जीवन की!
मैंने प्यार किया
नभ पर उड़ते जलधर से
जिसने बरसाकर जल की बूँदें
प्यास बुझा दी धरणी की!
मैंने प्यार किया
ऊँचे शैल शिखर से
प्रेरणा स्त्रोत रहा सदा जो
राह दिखाई उन्नयन की!
मैंने प्यार किया
सहृदय मित्रों से
जिन्होंने सुख-दुख में साथ दिया
निभाई आन मित्रता की!
मैंने प्यार किया
श्रेष्ठतम शब्द संपदा से
जिसने विचारों को नई दिशा दी
समझा दी बात संचेतन की!
मैंने प्यार किया
संतों की शीतल वाणी से
जिनके सान्निध्य से मिलती
सुरभि और शीतलता चंदन की!
मैंने प्यार किया
आत्म-तत्व के वैभव से
जिसने अनश्वर का भेद बताया
छवि दिखाई संपूरन की!
मैंने प्यार किया
प्रेम की स्निग्ध भावनाओं से
जिसने जन-जन को मीत बनाया
लागी लगन प्रिय से मिलन की!




संदेसा तेरे नाम का

संदेसा तेरे नाम का

संदेसा तेरे नाम का
जब भी आया मेरे द्वारे
खिल-खिल उठी मन की कली
लाज से हुये नयन रतनारे
लेकर जो आया संदेसा
लगा उस पल बड़ा ही अपना
उस पल की अनुभूति ऐसी
सच हो जैसे भोर का सपना!
विरह की ज्वाला होती कैसी
कैसे मैं तुमको समझाऊँ
कितने ताप सहे उर ने
शायद किसी से कह न पाऊँ!
संदेश के एक-एक अक्षर में
होती तुम्हारी छवि उजागर
खो जाती मैं शब्द-पाश में
सारे जग को विसराकर!
प्रतीक्षा की घड़ियों में प्रियवर
रही प्रतीक्षा सुधि लेने की
संदेसे की भी बाट जोहती
प्रीत की रीत है केवल देने की!
देहरी पर आस का दीप जलाए
सजाती भावनाओं की रंगोली
हर आहट पर कान लगाए
सुनती सखियों की चुहल, ठिठोली!
प्रीत की डोरी कितनी कोमल
इसको भी जान लिया मैंने
प्रीत के मोती कितने अनमोल
इसको भी मान लिया मैंने!
प्रीत की माला रखी सहेजकर
उर के कंचन कोष में
मणियों में संदेश है अंकित
रिक्तता नहीं प्रीत के राहत कोष में!
समय! तुमसे क्या करूँ विनती
तुम तो संदेश सुनाते चलते रहने का
पल-पल, छिन-छिन कहते जाते
बीता न कभी वापस आने का!
पल-पल कटते जीवन में
पल-पल सौंदर्य रहे सुशोभित
क्षण-क्षण क्षय होते जग में
सद्भावना संदेश करें संप्रेषित!
अनगिन घड़ियों में एक घड़ी
संदेसा लाएगी अंतिम श्वास का
इस परम सत्य से अनभिज्ञ नहीं
भरोसा नहीं अगले निश्वास का!
समय! संदेसा तुम पहुँचा देना
मेरे प्रियतम, प्रियरूप, प्रियवर को
जीवन दीप की लौ रही समर्पित
महामिलन विराट ज्योतीश्वर से हो!

रहे स्मरण प्रतिपल प्रभु का
जिसका संदेसा सृष्टि सुनाती
सुख-दुख के संदेसे समरूप
मैं तो प्रभुवर जी के रंगराती।







Saturday, October 9, 2010

আসরে-আসরে আগমনী গান

আসরে-আসরে আগমনী গান



বইতেছে শরদের স্নিগ্ধ বাতাস
ছড়িএছে চতুর্দিক কত উল্লাস
আসরে-আসরে আগমনী গান
আনংদে ভরা  শুভ্র নীলাকাশ.....
অভিনংদন মা শারদের সুপ্রভাতে
উদবোধন উদঘোশ উশা বেলাতে
মুদিত মংগল ঘট সাজাইতে
সুগংধ সুমন লইয়া দূ হাথে
নমন করি মা তব শ্রীচরনে
অংতরে ভরে উঠেছে প্রকাশ.....
আনংদিত ইংদিরা পুরম বাসীরা
মাএর বংদনে আল্হাদিত ঢাকীরা
সুশোভন আলপনা সাজায় সখিরা
সদ্ভাবের সুর সাধিল সাথীরা
সংকল্পের শুভ দীপ জালাইয়া
প্রারংভ হল প্রগতির সত্প্রয়াস.....
বাত্সল্যময়ী মা বরদায়িনী
শুভদা, সুখদা শাংতিদায়িনী
বংদন,আরাধন করি মা স্তবন
কল্যান কর মা করুনাদায়িনী
নিজ কৃপা রাখ ভকতবত্সলা
হর মা তুমি সংসারের ত্রাস... 


Wednesday, October 6, 2010

प्रीत की अभिव्यक्तियाँ

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प्रीत की अभिव्यक्तियाँ

शब्दावली पर आश्रित रहीं कब
प्रीत  की  अभिव्यक्तियाँ !
नयन कह जाते प्रीत की भाषा
लगीं हों चाहे कितनी पाबंदियाँ !
भरी सभा के बीच चुहल सुन
बिहारी की नायिका लजियाती
लाज  भरे  लोचन से  लाजो
अनकहा बहुत कुछ कह जाती !
कवि ने मेघदूत रच डाला
बादल ले चले प्रेम संदेस
हवाओं में सुरभि प्रीत की
बही जो सीमा पार विदेस !
चातक  सा  प्यासा  प्रेमी
इत-उत उड़ता  आकुल-व्याकुल
स्वाति की बूँद मिल जाती
स्वत: खिल जाते मन के वकुल!
मुकुल, पुष्प, पल्लव, द्रुम, लताएँ
भँवरे, तितली, शुक, काग, कपोती
प्रेमियों  का  मन  जीता  सबने
पहुँचाई  प्रिय को  प्रिय की पाती!
पद्मावती  की  प्रेम-कथा में
हीरामन शुक की मुख्य भूमिका
प्रेम से परमेश्वर मिल जाता
वहाँ न कोई  काम  अहम् का!
अनोखी  प्रेम  की दुनिया
निराली इसकी अभिव्यक्तियाँ
धरा-गगन के बीच प्रकृति
हँस-हँस करती  अठखेलियाँ
त्वरित संचार हो या सबकुछ
पल में ध्वस्त हो जाये
प्रेम की भावना शाश्वत जग में
कोई न इसे मिटा पाये ।